18 अगस्त 1935 को ऊपरी असम के डिब्रूगढ़ शहर में मारवाड़ी समाज के एक बैठक में "असम प्रांतीय मारवाड़ी सम्मलेन" का गठन हुआ था. डिब्रूगढ़ में ही 9 एवं 10 नवंबर 1935 को "असम प्रांतीय मारवाड़ी सम्मलेन" का प्रथम अधिवेशन संम्पन्न हुआ. स्व० प्रभुदयाल जी हिम्मतसिंहका एवं स्व० बृद्धिचंद जी करवा ने क्रमशः प्रथम प्रांतीय अध्यक्ष एवं प्रथम महामंत्री का दायित्व ग्रहण किया. 25 दिसंबर 1935 को इस संस्था को राष्ट्रीय स्वरुप प्रदान किया गया. वर्तमान में इसका प्रांतीय कार्यालय गुवाहाटी में एवं राष्ट्रीय कार्यालय कोलकाता में है. मारवाड़ी सम्मेलन अखिल भारतीय स्तर पर मारवाड़ियों का एक विचार प्रधान प्रतिनिधि संगठन है. अपने स्थापना काल से ही इसने समाज में फैली नाना प्रकार की कुरीतियों का मुखर विरोध किया है. अपने शुरुआती वर्षों में संगठन ने दहेज एवं घूंघट प्रथा का विरोध किया और इनके खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया था. इस क्रांतिकारी पहल के कारण समाज के प्रगतिशील तबके का जबरदस्त समर्थन इसे मिला था. वहीं दूसरी ओर विधवा विवाह का समर्थन करने के चलते संगठन को समाज के यथास्थितिवादियों का विरोध भी झेलना पड़ा था. मारवाड़ी समाज का प्रतिनिधि संगठन होने के नाते समाज को प्रभावित करने वाले हर मुद्दे पर सम्मेलन अपनी विशिष्ट सोच रखता है.
मारवाड़ी सम्मेलन के उद्देश्य :
मारवाड़ी सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य समाज का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शारीरिक, बौद्धिक एवं नैतिक स्तर पर सर्वांगीण विकास करना है. सम्मेलन अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति काफी संवेदनशील है. लिहाजा यह सामाजिक कुरीतियों एवं कुप्रथाओं के विरुद्ध प्रभावी जनमानस बनाने की दिशा में कार्य करते रहता है. मारवाड़ी समाज विभिन्न समुदायों एवं घटकों में बंटा हुआ है. सम्मेलन इन सभी समुदायों को एकता के सूत्र में बांधने के लिए प्रतिबद्ध है. समाज सेवा मारवाड़ी सम्मेलन के मुख्य उद्देश्यों में से एक है. सम्मेलन बगैर किसी जातिगत एवं धार्मिक भेदभाव के जनसाधारण के लाभार्थ जन सेवा के कार्य करते रहता है. इसके अलावा राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को बचाने और उनके प्रचार-प्रसार के लिए भी सम्मेलन कई स्तर पर प्रयास करता है. कला, विज्ञान, साहित्य, पत्रकारिता एवं अन्य रचनात्मक गतिविधियों में लगे समाज के लोगों को प्रोत्साहित करना एवं उनके कार्यों को उचित सम्मान देना भी सम्मेलन के उद्देश्यों में से एक है. समाजोपयोगी साहित्य की रचना को प्रोत्साहन देना तथा उसके प्रकाशन एवं वितरण की व्यवस्था करना भी सम्मेलन के उद्देश्यों में शामिल है. विभिन्न माध्यमों से निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा मारवाड़ी समाज की छवि को धूमिल करने के प्रयासों का भी मारवाड़ी सम्मेलन प्रतिकार करता रहा है.
मारवाड़ी सम्मेलन का सांगठनिक ढांचा त्रिस्तरीय है. इसमें सबसे ऊपर राष्ट्रीय इकाई है. उसके बाद प्रांत और फिर शाखाएं. दरअसल शाखाओं के मार्फत से ही सम्मेलन अपनी नीतियों और उद्देश्यों को मूर्त रूप देता है.
पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों को मिलाकर पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन का गठन किया गया है. वर्तमान में सम्मेलन की पूर्वोत्तर इकाई के अंतर्गत 69 शाखाएं हैं. इन शाखाओं के 5300 से अधिक आजीवन सदस्य हैं. शाखा और सदस्यता विस्तार का काम पूरी शिद्दत के साथ जारी है. उल्लेखनीय है कि सम्मेलन की सदस्यता हासिल करने की आयु की कोई अधिकतम सीमा नहीं है.
सम्मेलन एक लोकतांत्रिक संस्था है. राष्ट्रीय स्तर पर इसका संविधान है. इसके प्रावधानों के मुताबिक संगठन काम करता है. संगठन के राष्ट्रीय, प्रांतीय और शाखा स्तर पर नेतृत्व का चयन चुनाव प्रक्रिया के द्वारा होता है. राष्ट्रीय, प्रांतीय एवं शाखा कार्यकारिणी का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है.
प्रत्येक प्रांत अपनी सुविधा और परिस्थितियों के अनुसार अपना-अपना संविधान बनता है, जिसे राष्ट्रीय इकाई से अनुमोदित करवाना आवश्यक होता है. इसके अलावा शाखाओं के लिए नियमावली होती है, जिनका अनुसरण कर वे अपने सांगठनिक काम करती हैं. सांगठनिक सुविधा के लिए कई प्रांतों ने अपने क्षेत्र को मंडलों में विभाजित किया है. प्रत्येक मंडल का एक उपाध्यक्ष होता है, जिसकी जवाबदेही प्रांतीय कार्यकारिणी के प्रति होती है.
असम सहित पूर्वोत्तर भारत के अन्य राज्यों में मारवाड़ी समाज के सामने कई चुनौतियां हैं. मारवाड़ी सम्मेलन समाज को इन चुनौतियों से निपटने में हर संभव सहयोग देता रहा है.